(११२)
करिये भाई सतगुरू गुरू पद सेवा॥टेक॥
विषय भोग मन ललचि-ललचि धरे, जाय पड़े यम जेवा।
मात पिता दारा सुत बन्धू, कुटुम्ब न करे तव सेवा॥१॥
धन को गिने निज तन न सहाई, तुम हंसा एक एका।
याते चेति सतगुरु गुरु सेवो, करिहैं सहाइ अनेका॥२॥
गुरु निज भेद दें अधर चढ़न को, गुरुमुख चढ़त बिसेखा।
चढ़त-चढ़त सो टपत गगन सब, जाय मिलत सब सेखा॥३॥
देवी साहब पूरण सतगुरु, जिन सम भेदि न दूजा।
'मेँहीँ' निशिदिन चरण शीश धरि, आप अरपि करु पूजा॥४॥