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वर्णमाला क्रमानुसार

 ( ध / 3)

1. ध्यान भजन हीन, लहिहौ न प्रभु धन

(१३०)
ध्यान-भजन-हीन, लहिहौ न प्रभु धन।
को कहाँ भये सुभक्त पढ़ि गाइ मात्र मन॥१॥
चित अति चंचल, विषय-रत केवल।
सप्रेम भजन बल, होय न साधन बिन॥२॥
भजन ध्यान साधन, करि चित आपन।
बस करि छन-छन, प्रेम दृढ़ाउ जन॥३॥
राम नाम धुन धरि, प्रेम अति थिर करि।
भव दुख जाय टरि, अस नाम उपासन॥४॥
 ध्यान अभ्यास करि नित, होय 'मेँहीँ' निज हित।
अति ही प्रसन्न चित्त, आपन साधन गुण॥५॥
ध्यान दर्पण गुण, अध्यानी अन्ध जाने न।
गुरु देवैं भेद अंजन, करु हेरि ही नयन॥६॥

2. ध्यानाभ्यास करो सद सदही

(३३) कहरा
ध्यानाभ्यास करो सद सदही, चातक दृष्टि बनाई हो।
लखत लखत छवि बिन्दु प्रभू की, ज्योति मंडल धँसि धाई हो॥१॥
राम नाम धुन सतधुन सारा, शब्द केन्द्र तें आई हो।
ता धुन भजत मिलो प्रभु से निज, आवागमन नसाई हो॥२॥
गुरु की भक्ति साधु की सेवा, बिनु नहिं कछुहू पाई हो।
याते भजो गुरू गुरु नित ही, रहो चरण लौ लाई हो॥३॥
विन्दु चन्द तब सूर प्रकाशे, शब्द-लहर लहराई हो।
जो अति सिमिटि रहै सुखमन में, ताको पड़ै जनाई हो॥४॥
'मेँहीँ' सतगुरु की बलिहारी, जिन यह युक्ति बताई हो॥
धन्य-धन्य सतगुरु मेरे पूरे, निसदिन तुव शरणाई हो॥५॥