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वर्णमाला क्रमानुसार

 ( भ / 12)

1. भजु गुरु नामा, लहु विश्रामा

(८८)
भजु गुरु नामा, लहु विश्रामा,
बिनुगुरु भजन न चैन रे॥
भजु गुरु नाम, भजु गुरु नाम,
भजो गुरू पद पूरन काम॥
राम आदि अवतार, देव मुनि सन्त आर,
गुरु-पद भजते, अहमति तजते,
करते गुरु-पद ध्यान रे॥१॥ भजु०॥
घट तम कूप में, जुग-जुग जीव भ्रमे,
ले गुरु भेद, जा तम छेद,
गुरु-पद-नख बिन्दु देख रे॥२॥ भजु०॥
 पद नख बिन्दु लख, एक टक दृष्टि रख,
सो बिन्दु तिल तारा, दशम दुआरा,
जगमग मणि गुरु जोति रे॥३॥ भजु०॥
सहस्र कमल दल, झलमल झलमल,
पूर्ण विधु गुरु रूपा, अतिहि अनूपा,
लखि जुड़वत हिय नैन रे॥४॥ भजु०॥
त्रिकुटी महल चढ़ दुरगम गुरु गढ़,
जहाँ ब्रह्म दिवाकर रूप गुरू धर,
करैं परम परकाश रे॥५॥ भजु०॥
सुन्न अरु महासुन्न, भँवर गुफाहु गुन,
तहाँ सत धुन धारा, गुरु रूप सारा,
धरि स्रुति मिलु सतनाम रे॥६॥ भजु०॥
अलख अगम सत, अनीह अनाम अकथ,
गुरु मूल सरूपा, 'मेँहीँ' अनूपा,
भजि मिलि हो भव पार रे॥७॥ भजु०॥

2. भजु मन सतगुरु दयाल

(८४)
भजुमन सतगुरु दयाल, काटैं जम जाला॥१॥
प्रणतपाल अति कृपाल, प्रेम को अगाधि ताल,
हरत सकल द्वन्द्व जाल, शम दमादि शाला॥२॥
पाँचो अघ दैत्य साल, पाँच को कराल काल,
पंच कोष दहन ज्वाल, प्रीतम हियमाला॥३॥
टालन भव खेद जाल, जालन भ्रम भेद काल,
कालन को अति कराल, समरथ गुरु दयाला॥४॥
'मेँहीँ' कहै हो दयाल, तुमहीं जन रच्छपाल,
सबके तुम मुकुट माल, मोको प्रतिपाला॥५॥

3. भजु मन सतगुरु दयाल गुरु दयाल

(८५)
भजु मन सतगुरु दयाल, गुरु दयाल प्यारे॥१॥
गुरु पद को बड़ प्रताप, भक्तन को हरत ताप,
अति कराल काल काँप, अस प्रभाव न्यारे॥२॥
गुरु गुरु अति सुखद जाप, जापक जन हरत ताप,
गुरु ही सुख रूप आप, अमित गुणन धारे॥३॥
गुरु गुरु सब जाप भूप, अनुपम सत शान्ति रूप,
उपमा में अति अनूप, दायक फल चारे॥४॥
गुरु गुरु जप गुरु दयाल, गुरु दयाल गुरु दयाल,
निश दिन गुरु गुरु दयाल, 'मेँहीँ' उर धारे॥५॥

4. भजु मन सतगुरु सतगुरु

(३०)
भजु मन सतगुरु सतगुरु सतगुरु जी॥१॥
जीव चेतावन हंस उबारन,
भव भय टारन सतगुरु जी। भजु०॥२॥
भ्रम तम नाशन ज्ञानप्रकाशन,
हृदय विगासन सतगुरु जी। भजु०॥३॥
आत्म अनात्म विचार बुझावन,
परम सुहावन सतगुरु जी। भजु०॥४॥
सगुण अगुणहिं अनात्म बतावन,
पार आत्म कहैं सतगुरु जी। भजु०॥५॥
मल अनात्म ते सुरत छोड़ावन,
द्वैत मिटावन सतगुरु जी। भजु०॥६॥
पिण्ड ब्रह्माण्ड के भेद बतावन,
सुरत छोड़ावन सतगुरु जी। भजु०॥७॥
गुरु-सेवा सत्संग दृढ़ावन,
पाप निषेधन सतगुरु जी। भजु०॥८॥
सुरत-शब्द मारग दरसावन,
संकट टारन सतगुरु जी। भजु०॥९॥
ज्ञान विराग विवेक के दाता,
अनहद राता सतगुरु जी। भजु०॥१०॥
अविरल भक्ति विशुद्ध के दानी,
परम विज्ञानी सतगुरु जी। भजु०॥११॥
प्रेम दान दो प्रेम के दाता,
पद राता रहें सतगुरु जी। भजु०॥१२॥
निर्मल युग कर जोड़ि के विनवौं,
घट-पट खोलिय सतगुरु जी। भजु०॥१३॥

5. भजो भजो गुरु नाम हो

(८७)
भजो भजो गुरु नाम हो प्यारे, भजो भजो गुरु नामा हो॥१॥
तन धन दारा सपन है सारा, अन्त न आवै कामा हो॥२॥
घट में तेरे घोर अन्धेरा, सोइ भरम को जामा हो॥३॥
सतगुरु पद-नख-बिन्दु निरखि के, त्यागि चलो तम धामा हो॥४॥
घट भीतर गुरु जोति अचरजी, निरखि गहो सतनामा हो॥५॥
सत्य नाम धुन राम सार सो, गुरु नाम पूरण कामा हो॥६॥
परखि सुरत सों नाम निर्मल यह, लहु 'मेँहीँ' विश्रामा हो॥७॥

6. भजो भजो गुरुदेव हो भाई

(९२)
भजो भजो गुरुदेव हो भाई, गुरू गुरू गुरुदेव जी॥ टेक॥
तन मन धन जन अर्पण करि-करि, करो करो गुरु सेव जी।
विधि औ हरि हर पावत नाहीं, बिना गुरू प्रभु भेव जी॥१॥
अति दुस्तर भव निधि के माहीं, खेवटिया गुरुदेव जी।
भक्ति नाव में लेहिं चढ़ाई, पार करें भव खेव जी॥२॥
सहित त्रिदेव कोटि तैंतिस सुर, करें सदा गुरु सेव जी।
राम कृष्णादि सकल अवतारण, सेवें तजि अहमेव जी॥३॥
देव पितर सह पूरण ब्रह्मऽरु अगम अनाम की सेव जी।
गुरु सेवा सम कोउ न सेवा, 'मेँहीँ' कर गुरु सेव जी॥४॥ 

7. भजो सत्तनाम, सत्तनाम

(७७) संकीर्त्तन
भजो सत्तनाम, सत्तनाम, सत्तनाम ए॥१॥
सत्तनाम के आधार, पर ही थिर है संसार।
जानैं सन्तन विचार॥ भजो ०॥२॥
सत्तनाम धार सार, सभी घट में पसार।
पावै बेधै असार॥ भजो ०॥३॥
धुन अनहत अपार, परम पुरुष को अकार।
सत्तनाम सोई सार॥ भजो ०॥४॥
सत्तनाम परम नाद, सभी घट में बिसमाद।
मिलै सतगुरु परसाद॥ भजो ०॥५॥ 

8. भजो सत्यगुरु सत्यगुरु

(९०)
भजो सत्यगुरु सत्यगुरु सत्यगुरु ए॥१॥
गुरु ज्ञान को विचार, मुख तें करते उचार,
होता संशय संहार॥भजो०॥२॥
सभी ममता पसार, भव बंधन असार,
गुरु लेते निवार॥भजो०॥३॥
सभी इन्द्रिन को भोग, गुरु कहते हैं रोग,
करा देते वियोग॥भजो०॥४॥
इस तन के नौ द्वार, में पूर्ण अंधकार,
श्रुत फँसी है मँझार॥भजो०॥५॥
गुरु भेद देवैं सार, खुलै बन्द दशम द्वार,
हो ब्रह्माण्ड में पैसार॥भजो०॥६॥
छूटै पिण्ड अंधकार, लखो जोति चमत्कार,
यह गुरु से ही उपकार॥भजो०॥७॥
गुरु सार शब्द भेद, देइ मिटते भव खेद,
धुन धरिये जोति छेद॥भजो०॥८॥
करि सत धुन को ध्यान, लहैं सन्त सब अनाम,
यही निर्मल निर्वाण॥भजो०॥९॥ 

9. भजो साध गुरु साध गुरु

(८९)
भजो साध गुरु साध गुरु साध गुरु ए॥१॥
गुरु दाता दयाल, वह काटैं यम जाल,
पल में कर दें निहाल॥भजो०॥२॥
गुरु कहते सत ज्ञान, सुनके मिटता अज्ञान,
सुख होता महान॥भजो०॥३॥
गुरु ज्ञान सूर्य रूप, उनकी जोति अनूप,
उर के नासैं तम कूप॥भजो०॥४॥
गुरु खोलैं तिल द्वार, हो ब्रह्माण्ड में पैसार,
लखिये जोती अपार॥ भजो०॥५॥
देइ सुरत शब्द भेद, मिटा देते भव खेद,
करिये गुरु की उमेद॥भजो०॥६॥ 

10. भजो हो गुरु चरण कमल

(८३)
भजो हो गुरु चरण कमल, भव भय भ्रम टारनं॥१॥
अति कराल काल व्याल, विषम विष निवारणं॥२॥
दीन बन्धु प्रेम सिन्धु, ज्ञान खड्‌ग धारणं॥३॥
महा मोह कोह आदि, दानव संघारणं॥४॥
सर्वेश्वर रूप गुरु, भगतन को तारणं॥५॥
'मेँहीँ' जपो गुरु गुरु, गुरु गुरु मन मारनं॥६॥

11. भजो हो मन गुरु उदार

(८६)
भजो हो मन गुरु उदार, भव अपार तारणं॥१॥
ज्ञानवान अति सुजान, प्रेम पूर्ण हृदय ध्यान,
विगत मान सुख निधान, दास भाव धारणं॥२॥
रहे जहाँ सतसंग नित्त, सुजन जन सों नेह हित्त,
शब्द तार धरे सार, प्रकृति पार उतारनं॥३॥
छन-छन मन ध्यान रत्त, श्रुति रमे धुन राम सत,
प्रेम मगन जग में भ्रमण, करि करि जन तारणं॥४॥
पलहू नहिं अनत चैन, सतसंग में दिवस रैन,
सरब जगत सुक्ख दैन, भक्तजन उधारनं॥५॥
जग में गुरु ही आधार, 'मेँहीँ' नहिं आन सार,
गुरु बिनु सब अंधकार, सूर्य चन्द्र तारनं॥६॥

12. भाई योग हृदय वृत्त केन्द्र बिन्दु

(७०) कजली
भाई योग हृदय वृत केन्द्र बिन्दु, जो चमचम चमकै ना॥टेक॥
नजर जोड़ि तकि धँसै ताहि में, धुनि सुनि पावै ना।
सुरत शब्द की करै कमाई, निज घर जावै ना॥१॥
निज घर में निज प्रभु को पावै, अति हुलसावै ना।
'मेँहीँ' अस गुरु सन्त उक्ति, यम-त्रास मिटावै ना॥२॥