(८८)
भजु गुरु नामा, लहु विश्रामा,
बिनुगुरु भजन न चैन रे॥
भजु गुरु नाम, भजु गुरु नाम,
भजो गुरू पद पूरन काम॥
राम आदि अवतार, देव मुनि सन्त आर,
गुरु-पद भजते, अहमति तजते,
करते गुरु-पद ध्यान रे॥१॥ भजु०॥
घट तम कूप में, जुग-जुग जीव भ्रमे,
ले गुरु भेद, जा तम छेद,
गुरु-पद-नख बिन्दु देख रे॥२॥ भजु०॥
पद नख बिन्दु लख, एक टक दृष्टि रख,
सो बिन्दु तिल तारा, दशम दुआरा,
जगमग मणि गुरु जोति रे॥३॥ भजु०॥
सहस्र कमल दल, झलमल झलमल,
पूर्ण विधु गुरु रूपा, अतिहि अनूपा,
लखि जुड़वत हिय नैन रे॥४॥ भजु०॥
त्रिकुटी महल चढ़ दुरगम गुरु गढ़,
जहाँ ब्रह्म दिवाकर रूप गुरू धर,
करैं परम परकाश रे॥५॥ भजु०॥
सुन्न अरु महासुन्न, भँवर गुफाहु गुन,
तहाँ सत धुन धारा, गुरु रूप सारा,
धरि स्रुति मिलु सतनाम रे॥६॥ भजु०॥
अलख अगम सत, अनीह अनाम अकथ,
गुरु मूल सरूपा, 'मेँहीँ' अनूपा,
भजि मिलि हो भव पार रे॥७॥ भजु०॥